Saturday, 21 October 2017

हमें आशा है उस दिन की जब हमें भी मनुष्य समझा जाये






ट्रांसपोर्ट या लोगिस्टिक शब्द जितना छोटा है, वास्तविकता में वह उतना ही बड़ा महत्वपूर्ण और जटिल कार्य है। किसी भी सफल राष्ट्र का सबसे मजबूत आधार स्तम्भ होता है ट्रांसपोर्टेशन व्यवस्था और हर अच्छी ट्रांसपोर्टेशन सर्विस सफल होती है मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर से। मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर सफल होता है ईमानदार कर दाताओ से ,करदाता ईमानदार होता है सरल और सुगम व्यापारिक नीतियों और राष्ट्रीयता  की भावनाओ से।  यू  तो हम खुद को प्रगतिशील राष्ट्र मन कर कुंए के मेंढक की भांति खुद को सफल और आगे मानते है किन्तु हम उपरोक्त किन तथ्यों को पूरा करने में सफल रहे ये विचार करने योग्य है। हम आज तक ढंग से देसी नहीं बन सके और विदेशियों की होड़ में निकल पड़े। हमारी हालत और हालात उस बिल्ली की तरह है जो आंख बंद करके दूध पीती है और जान बुझ कर अपने ऊपर पड़ने वाले लाठी के प्रहार को देखना नहीं चाहती। हमारी चतुरता कुटिलता में कब परावर्तित होती जा रही कदाचित इसका आभास हमें नहीं या फिर हम सोचना ही नहीं चाहते. सरकार हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है किन्तु जब बात मार्ग परिवहन की आती है तब सारी स्थितियाँ निराधार पायी जाती है क्वचित पूंजीवाद को बढ़ावा देने के लिए करोडो व्यक्तियों के प्रति प्रतिकूल व्यव्हार किया जाता है । मुंबई से दिल्ली के लिए जिस ट्रक को किराया ५०००० मिलता है। उसी ट्रक को दिल्ली से मुंबई के लिए २५,००० भी नहीं मिल पता। ये क्या और क्यों है। गाड़ी और चालक के कागजो के पुस्टि के लिए लाखो सरकारी कर्मचारी नियुक्त है किन्तु उनकी वास्तविक स्थिति पर प्रकाश डालने के लिए कोई नहीं। उनके व्यस्तविक अस्तित्व को कोई स्वीकारना तक नहीं चाहता उल्टा हीन और कुटिल भावना से देखा जाता है। हर बार हड़ताल के बाद करोडो के घाटे की खबरे मिलती है किन्तु आम  बाजार में ट्रांसपोर्टरों की वास्तविक स्थिति दिक्कतों को कोई सुनना नहीं चाहता। क्या विकासशील भारत इन कसौटियों पर विकसित बनेगा। ये वो तथ्य है जो सुनने में बड़े अच्छे लगते है किन्तु समझने में बड़े तर्क वितर्क सुनने में बड़ी कठिनाइया  है। हर पांच वर्ष में सरकार बदलती है भारत का ३६ राज्यों में हर समय नियम कानून बदलते है उगाही के रस्ते बढ़ते और बदलते है रस्ते के टोल ,तेल के भाव ,बीमा और कागजी खर्चे ,जबरदस्ती की रंगदारी बदलते है बस नहीं बदलती तो मार्ग परिवहन संचालको और चालकों की स्थिति। बहुराज्यीकरण में हमें एक राज्य ८ फुट ऊंचाई का माल ले जाने देता है तो दूसरा राज्य इस जघन्य अपराध के लिए हमसे १०,००० दंड वसूलता है ,आगे जाने पर कोई ५ तो कोई ३००० वसूलता है। १०० किलो ज्यादा होने पर १ टन की फाइन वसूली जाती है जबकि भारत में चलनेवाली ट्रेने तिगुना भर लेकर चलती है जिसपर कभी जुरमाना नहीं होता।  ये उपहार और परोपकार  केवल मार्ग परिवहन पर ही है। हमें आशा है उस दिन की जब हमें भी मनुष्य समझा जाये।




1 comment:

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